पूजनीय प्रभो हमारे भाव उज्ज्वल कीजिए।
छोड़ देवें छल कपट को मानसिक बल दीजिए।।

वेद की बोलें ऋचाएँ सत्य को धारण करें।
हर्ष में हो मग्न सारे शोक सागर से तरें।।

अश्वमेधादिक रचायें यज्ञ पर उपकार को।
धर्म मर्यादा चलाकर लाभ दें संसार को।।

नित्य श्रद्धा भक्ति से यज्ञादि हम करते रहे।
रोग पीड़ित विश्व के संताप सब हरते रहें।।

भावना मिट जाए मन से पाप अत्याचार की।
कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नर नार की।।

लाभकारी हों हवन हर जीवधारी के लिए।
वायु जल सर्वत्र हो शुभ गन्ध को धारण कियें।।

स्वार्थ भाव मिटे हमारा प्रेम पथ विस्तार हो।
‘इदन्न मम’ का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो।।

प्रेम रस में तृप्त होकर वन्दना हम कर रहे।
नाथ करुणा रूप करुणा आपकी सब पर रहे।।

परम पूज्य पिता हमारे भाव उज्ज्वल कीजिए।
छोड़ देवें छल कपट को मानसिक बल दीजिए।।

ओम है जीवन हमारा, ओम प्राणाधार है,
ओम है करता विधाता, ओम पालनहार है |

ओम है दुख का विनाशक, ओम सर्वानंद है,
ओम है बल तेज धारी, ओम करुणा नन्द है |

ओम ही जीवन हमारा, ओम प्राणाधार है,
ओम ही करता विधाता, ओम पालनहार है।

ओम सबका पूज्य है हम, ओम का पूजन करें,
ओम के ही ध्यान से हम, शुद्ध अपना मन करें |

ओम ही जीवन हमारा, ओम प्राणाधार है,
ओम ही करता विधाता, ओम पालनहार है।

ओम के गुरुमंत्र जपने, से रहेगा शुद्ध मन,
दिन प्रतिदिन बुद्धि बढ़ेगी, धर्म में होगी लगन |

ओम ही जीवन हमारा, ओम प्राणाधार है,
ओम ही करता विधाता, ओम पालनहार है।

ओम के जप से हमारा, ज्ञान बढ़ता जाएगा,
अन्त में ये ओम हमको, मुक्ति तक पहुंचाएगा |

ओम ही जीवन हमारा, ओम प्राणाधार है,
ओम ही करता विधाता, ओम पालनहार है।

हे सर्वरक्षक ओम् तुमको बार-बार प्रणाम है,
प्राण प्रिय भू दुःख विनाषक ओम् तुम्हारा नाम है।

साच्चिद स्वः आनन्द मंगल मूल तुम शुभ रूप हो,
हम हैं प्रजा सब आपकी, तुम ही हमारे भूप हो।

माता-पिता सविता विधाता देव दिव्य प्रकाश हो,
हम ग्रहण करते है वरेण्यम् भक्तजन की आस हो।

शुभ गुण सदन विज्ञान सागर भव्य प्रिय भुवनेश हो,
हम है उपासक आपके तुम ज्ञान गम्य गणेश हो।

मानस भवन में आपका हम ध्यान् नित् धरते रहें ,
प्रेरित करो बुद्वि हमारी, दुरित सब हरते रहें।

हो भव्य भावों से भरा भगवान् यह धर आपका,
निष दिन सुमंगल गान हो दर्षन न होवे पाप का।

हे सर्वरक्षक ओम् तुमको बार-बार प्रणाम् है,
प्राण प्रिय भू दुःख विनाशक ओम् तुम्हारा नाम है।

हे शुद्व बुद्व मुक्त स्वभाव, सत्य स्वरूप परमात्मन हम सभी
आपके वरण करने योग्य तेज को धारण करते है।

जो धारण किया हुआ तेज हमारी बुद्वियों को श्रेष्ठ मागों में
प्रेरित करे जिससे हम सभी दुःखों, दुर्गणों, दुव्र्यसनो से
पृथक हो, सदैव उत्तम गुण-कर्म स्वभाव पदार्थ
सुखादि को धारण करने में समर्थ हो।

हे प्रभो इस पावमानी पुनीत बेला में यज्ञदेव के समक्ष
उपस्थित होकर आपसे विनम्र प्रार्थना और कामना करते हैं
सबका जीवन श्रेष्ठ हो, श्रेष्ठ आचरण युक्त हो, आर्य कहलावे।

माता-पिता, गुरू-जन, वृद्वजन, विद्वान, आतिथि आदि की
सेवा सुश्रुषा करते हुए आषीर्वाद के पात्र होवें।

आपकी असीम अनुकम्पा से सभी स्वस्थ हों, निरोग हो,
प्रसन्न हों, दीर्धायु शतायु को धारण करते हुए पवित्र मन
से आपका चिन्तन, मनन, कीर्तन धन्यवाद सदैव करते रहें
आप द्वारा प्रदत्त आशीर्वाद से सबकी सब मनोकामनाऐं पूर्ण
हों सभी इष्ट कामनाऐं सिद्व हो तथा सर्वत्र सुख समृद्वि
शान्ति एवम् ऐष्वर्य का वास हो।

यही प्रार्थना और कामना है
कृपा कर स्वीकार करों। स्वीकार करों। स्वीकार करों।
ओम् शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

हे सर्वाधार,सर्वान्तर्यामी परमेश्वर! तुम अनन्तकाल से अपने उपकारों की वर्षा किये जाते हो। प्राणीमात्र की सम्पूर्ण कामनाओं को तुम्हीं प्रतिक्षण पूर्ण करते हो। हमारे लिए जो कुछ शुभ है तथा हितकर है, उसे तुम बिना मांगे ही स्वयं हमारी झोली में डालते जाते हो। तुम्हारे आंचल में अविचल शान्ति तथा आनन्द का वास है। तुम्हारे चरण-शरण की शीतल छाया में परम तृप्ति है, शाश्वत सुख की उपलब्धि है तथा सब अभिलाषित पदार्थों की प्राप्ति है।

हे जगतपिता परमेश्वर! हममे सच्ची श्रद्धा तथा विश्वास हो। हम तुम्हारी अमृतमयी गोद में बैठने के अधिकारी बनें। अन्त:करण को मलिन बनाने वाली स्वार्थ तथा संकीर्णता सब क्षुद्र भावनाओं से हम ऊंचे उठें। काम,क्रोध,लोभ,मोह,ईष्र्या,द्वेष इत्यादि कुटिल भावनाओं तथा सब मलिन वासनाओं को हम दूर करें। अपने हृदय की आसुरी वृत्तियों के साथ युद्ध में विजय  पाने के लिए ‘हे प्रभो’ हम तुम्हें पुकारते हैं और तुम्हारा आंचल पकड़ते हैं।

हे परम पावन प्रभो! हममें सात्विक प्रवत्तियां जाग्रत हों। क्षमा,सरलता,स्थिरता, निर्भयता,  अहंकारशून्यता इत्यादि शुभ भावनाएं हमारी सम्पत्ति हों। हमारा शरीर स्वस्थ तथा परिपुष्ट हो। मन सूक्ष्म तथा उन्नत हो। आत्मा पवित्र तथा सुन्दर हो। आपके संस्पर्श से हमारी सारी शक्तियां विकसित हों। विद्या और ज्ञान से हम परिपूर्ण हों। हमारा व्यक्तित्व महान तथा विशाल हो। हे प्रभो! अपने आशीर्वादों की वर्षा करो। दीनातिदीन के मध्य में विचरने वाले तुम्हारे चरणारविन्दों में हमारा जीवन अर्पित हो। इस अपनी सेवा लेकर हमें कृतार्थ करो।